मेरी कलम से......
रविवार, अक्तूबर 30, 2011
शनिवार, अगस्त 20, 2011
भट्टा पारसौल की आग , भाग-3
दोस्तों नमस्कार
लेकिन वहां से चलते हुए जो उन्होंने देखा वह रोंगटे खड़े करने वाले थे। मेधा जी को गांव में जाने से लोगो में एक विश्वास जगा, कि चलो कोई तो हमारी सुध लेने वाला है। मेधा जी के गांव में जाने के बाद तुरंत अस्पताल के डॉक्टर और एम्बुलेंस को प्रशासन ने बुलाया।घायल लोगो का इलाज होने लगा। लोगो में एक आशा की किरण दिखाई दी, की उनके के साथ जो भी हुआ है इसका इंसाफ उन्हें जरूर मिलेगा। समय बीता और एक दिन राहुल गांधी अपने सहयोगियों और सुरक्षा कर्मीयों के साथ सुबह के समय मोटर साइकिल पर सवार होकर चले आये। उन्होंने गांवों का मुआयना किया, और फिर पारसौल गांव में बैठ गये चौपाल पर। देखते-देखते लोगो कि भीड़ जमने लगी, और भीड़ इतनी हुई कि वहां से निकलना या आना जाना मुश्किल हो गया। जो लोग गांव छोड़ कर भागे थे फिर गांवो में आ गये दुसरे गांव के लोग भी आये हुए थे। लोग राहुल के एक झलक पाने के लिए बेकरार थे। लेकिन दोपहर के बाद राहुल गांधी वहीं के एक किसान के घर में खाना-खाने के लिए गये और फिर आराम करने लगे। इधर लोगो का हुजूम बढ़ता जा रहा था, लोग इंतजार में बैठे थे कि राहुल जी अब आयेंगे और उनका दिदार हो पायेगा। लेकिन शाम के छह बज रहे थे अभी भी वो घर में ही बैठे थे। वो अंदर से खबर भीजवा रहे थे कि लोगो को कहा जाए भट्ठा जाने के लिए मैं वही आता हुं फिर धरने पर बैठूंगा। लेकिन लोग मानने वाले कहा थे, मै भी शाम होता देख सोचा चलो ऑफिस के लिए चला जाए खबर भी लिखनी होगी। मैने अपना गाड़ी स्टार्ट किया और चल दिया, भट्ठा पहुंचने के साथ ही एक लड़का आया और कहा सरजी यहां क्या कर रहे हो, वहां चलो ओरिजनल चीजे दिखाता हुं। जिसे देखने के बाद मेरा तो होश ही ऊड़ गया, वो क्या था पता नहीं लेकिन ऐसा कहा जा रहा था कि इसी बिठौरे की आग में आदमी को जलाया गया है। जिसका जिक्र राहुल जी ने प्रधान मंत्री से मिल कर किये हैं।
मैने वहा की तस्वीर उतारी और ऑफिस के लिए भेज दिया। लेकिन वहां राहुल जी धड़ने पर बैठ गये उनके साथ बहुत लोग भी धड़ने पर बैठ गये। समय बीता रात के करीब ११ बज रहे थे ऊपर से फरमान आया राहुल को गिरफ्तार कर लिया जाये। हुआ ऐसा ही राहुल को गिरफ्तार किया गया और कासना थाने लाने के बाद डीएनडी पर ला कर छोड़ दिया गया जहां से वो अपने दिल्ली स्थित घर के लिए रवाना हो गये। हम लोग भी अपने ऑफिस लौट आये . खबरे छपी और सुबह प्रकाशित हुई....भट्ठा पारसौल में अभी और भी है जो अगले भाग में आप पढ़ेगे...
शुक्रिया....
सोमवार, जून 13, 2011
मेरी कलम से......: भट्टा पारसौल की आग. भाग-2
भट्टा पारसौल की आग. भाग-2
रविवार, मई 29, 2011
मेरी कलम से......: भट्टा-पारसौल की आग....
मंगलवार, मई 24, 2011
भट्टा-पारसौल की आग....
सुबह मैने अखबार में देखा ग्रेटर नोयडा के एक गांव भाट्टा पारसौल के किसान यूपी रोडवेज के कर्मचारियों को बंधक बना लिये थे। रोडवेज के कर्मचारी वहां रोड मैप के मुआएना करने गये थे जिस से की वहां पर बस सुविधा बहाल हो सके। लेकिन उन रोड वेज कर्मचारियों को क्या मालूम था कि वहां उन्हें बंधक बना लिया जायेगा। वैसे किसान धरने पर बैठे थे, मामला था भूमी अधिग्रहण का जिसमें उन्हे मुआवजा कम मिला था। मैने पेपर पढ़ा और साइड में रख दिया। तभी सुबह- सुबह मेरे ऑफिस से फोन आया, विजय तुम कहां हो, मैने कहां घर पर हुं। अरे यार भट्टा पारसौल चलना है वहां किसानो ने रोडवेज कर्मचारियों को बंधक बना लिया है। और वे कह रहे है इन्हें तभी छोड़ेंगे जब हमारी मांग मान न लिया जाए। मैने कहा हां अभी-अभी अखबार में पढ़ा है, हमारी ये संवाद मेरे सब एडिटर संदीप कामबोज के साथ चल रही थी। संदीप ने मुझे फौरन तैयार हो कर चलने को कहा। मैने कहा यार वहां जो लोकल रिपोर्टर है वह देख लेगा चलने की क्या बात है। उसने कहा यार मामला गंभीर है वैसे भी वहां का रिपोर्टर अभी नया है, हमें वो चीजे उस से नहीं निकल सकती जो हमें चाहिए। तुम जल्दी से आ जाओ, और बातें रास्ते में करेंगे। मैने भी फोन रखा और झट-पट तैयार होने के बाद संदीप को लेकर भट्टा- पारसौल के लिए निकल गया। ऊबड़- खाबड़ , सूनसान रास्ते से होते हुए हम लोग जा रहे थे, तभी चिल- चिलाती धूप में पहले से खड़े तीन युवक हमारा इंतजार कर रहे थे। हमारे पास कैमरा तथानयी मोटरसाइकिल था, जब हमलोग उनसब से आगे निकले तो उन तीनों ने हमारा पीछा करना शुरू कर दिया मैने भी देखा की हमारा कोई पीछा कर रहा है। मैने संदीप से कही भाई देख तो ये तीनों हमारा पीछा तो नहीं कर रहे हैं। संदीप ने कहा मुझे भी तो ऐसा ही लगता है। मैने अपनी मोटर साइकिल की एक्सलेटर चढ़ाया और फिर आगे ही रहा वो भी हमारा पीछा छोड़ने वाले कहां थे। मैने सोचा पुलिस को इतीला कर दिया जाए। लेकिन क्या पुलिस समय से पहुंच पायेगी, ये हमारे और नज़दीक आते जा रहे थे। मैने भी सोचा अगर ये बाइक चला कर हमें पकड़ सकते है तो मै भी इनके पकड़ में आने वाला नहीं हूं। आखिर उनको हमारा पीछा करना छोड़ना पड़ा। तब जा कर हमारे जान में जान आई। हम लोग भट्टा- पारसौल से अब भी करीब आठ से दस किलो मीटर के दूरी पर थे। पुलिस भट्टा जाने वाली सभी रास्तों को सील कर दी, भारी संख्य में पुलिस और पीएसी के बल को तैनात किया गया था। हम लोग ये देख कर चौक गये अरे यार इतनी पुलिस , कुछ गड़बड़ जरूर है, संदीप ने कहा, मैने भी हामी भरी। पुलिस वाले हमें वहां जाने से रोक रहे थे। किसी भी मीडिया वालों को वहां जाने नहीं दिया जा रहा था। तभी हमें एक उपाय सूझा मैने कहा चलो गांव के किसी पतली गली से निकल लेगें। संदीप ने कहा क्या तुमने देखा है मैने कहा नहीं देखा है पर पुछते हुए चले जायेगे। फिर संदीप ने कहा चलो फिर देर किस बात की। हम लोग वहा से निकल गये और गांव के पगडंडी सड़को से होते हुए वहां पहुंच गये। हमारे वहां जाने के कुछ देर बाद सभी मीडिया वाले भी आ गये। हम लोग धड़ने पर बैठे किसानों से उनका हाल जानने लगे। तभी मीडिया वालो को देख कर किसानो का नेता मनवीर सिंह तेवतीया हमलोगो से मिला। उसने किसानों से जुड़ी समस्याये बताई। उनकी मांग रखी कहा अगर कोई अधिकारी हम लोगो से मिलेगा हमारी मांग मानेगा तभी हम धड़ना से उठेंगे। हम लोग ने रोडवेज के कर्मचारियों के बारे में जानना चाहा तो जवाब मिला आप लोगो से मिला दिया जायेगा। कुछ देर बाद एक युवक आया और हमें ले कर वहां गया जहां उन तीनों कर्मचारियों को रखा गया था। उन्हें देख कर ऐसा नहीं लगता था कि वो बंदी बनाये गये है। वे आराम से रह रहे थे। जब हमने उनसे पूछा कोई दिक्कत है यहां तो उनलोगो ने कहा की नहीं कोई दिक्कत नहीं है खाना -पानी सभी यहां मिल रहे है, लेकिन प्रशासन यहां आये किसानों से समझौता करे और हमें यहां से ले जाये। हमने भी उनका फोटो और स्टेटमेंट लेकर वहां से बाहर आ गए। तभी प्रशासन की गाड़ियों का काफिला आता हुआ दिखा। हमने सोचा शायद ये लोग बात करने आ रहे है । तभी गाड़ी आ कर रूकी और फोर्स गाड़ियों से निकलते ही किसानों पर हमला बोल दिया। किसी को ये बातें समझ में नहीं आयी, की आखिर ये हो क्या रहा है। पुलिस बल ने धड़ने पर बैठे लोगों पर पत्थर तथा लाठी डंडो से पीटना शुरू किया। इतना ही नहीं धड़ने पर बैठे लोगों को तीतर- बीतर करने के लिए आंसू गैस के गोलो फेंके गये। हवाई फायरिंग शुरू हुई जो भी किसान इनके चंगुल में आया उसको पीट- पीट कर अधमरा कर दिया पुलिस वालों ने। किसानो के बीच एक मीडिया कर्मी बैठा उनसे कुछ पुछ रहा था तभी पुलिस वालो ने उसको भी पुरी तरह से पीटा। फिर मीडिया कर्मी के दबाव में उसे छोड़ा गया तब तक उसका कान फट गया था, हाथ टूट गया था, पैंट में पेसाब हो गया था। ये हालात देख कर रूह कांप गयी। गोलियों की तड़तराहट के बीच कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। हर तरफ भगदड़ मचा हुआ था। लोगों में चीख पुकार सुनाई दे रहा था। लेकिन ये पुलिस वाले किसी को बकसने वाले कहां थे। किसानों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया, कुछ मीडिया वाले अपनी जान बचाने के लिए खेते में भाग गये थे। उस वक्त शाम के करीब चार बज रहे होंगे, पुलिस किसानों को खदेड़ते हुए उनके गांवों में चली गयी। साथ में थे डीएम दीपक अग्रवाल, एसएसपी सूर्य नारायण ,एसपी सिटी, एसपी देहात, तथा जनपद और पास के जनपदों के पुलिस फोर्स और पीएसी के जवान। तभी गांव के किसी ने रायफल से फायर करना शुरू किया एक गोली डीएम के घुटना में लगी, डीएम को गोली लगते ही पुलिस बल की हिम्मत कम हो गयी और वे लोग गांव से भागना शुरू किये। फिर क्या था गांव वालो ने पुलिस वालो को खदेड़ दिया, पुलिस वालो में वो खलबली मची जो देखने लायक था। हम भी उन लोगों के साथ भागने लगे, लोगों को रास्ता नहीं मिल पा रहा था कि कैसे वहां से भागा जाये। पुलिस बल बिना अपने अधिकारियों के परवाह किये बगैर गाड़ियों में बैठ- बैठ कर भागने लगे उनके अधिकारियों को जगह नहीं मिल पा रहा था। तभी मेरे मोटर साइकिल पर एक पुलिस ऑफिसर बैठ गया और कहां जल्दी-जल्दी चलाओ। लेकिन गाड़ियों और पुलिस के इस भी़ड़ में तेज कहां भागा जा सकता था। सो हम लोग कुछ आगे जा कर रूके । मेरा सहयोगी संदीप ना जाने कहा चला गया उस भगदड़ में फोन से भी बात नहीं हो पा रही थी। मै बेहद घबराया हुआ था, तभी उसका फोन आया तो पता चला वो किसी दुसरे गांव में जाकर छुपा है घटना से लगभग सात-आठ किलो मीटर दूर। उसने कहा विजय जल्दी से मुझे यहां से निकालो नहीं तो गांव वाले या पुलिस कोई हमें मार देगा। मैने उसकी खोज शुरू की और वह जल्दी ही मिल गया। फिर मैने उसे घटना स्थल पर ले कर आया। तभी एक बार और गांव वालो पर पुलिस और पीएसी के जवानों ने धावा बोल दिया इस बार गांव वाले सभी फिर आ गये थे और अब उनके पास हथियार भी थे। लेकिन पुलिस वालो से कम मैने भी अपना कैमरा लिया और घटना को शूट करने लगा तभी मेरे ऑखो के सामने गांव वालो के द्वरा दो पुलिस वाले मारे गये। हुआ यूं कि जब एक पुलिस वालो को गोली लगी तो दुसरा उसे उठाने चला गया तभी वह भी गोलीयों का शिकार बन गया। और वहीं मौत को गले लगा लिया। इस खूनी संघर्ष में दो गांव के किसान भी मारे गये थे। एक गोली मेरे कानो के पास से भी गुजरी, गोली की आवाज कुछ पी ईईईई.......करने जैसी थी और कान मेरा कुछ समय के लिए सून पड़ गया ।मुझे कुछ होश नहीं रहा क्योंकि मै डर गया था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करू। तभी दो पुलिस वाले मुझे वहां से ले कर पीछे गये। और बोलने लगे मारे जावोगे तो रिपोर्टीग कौन करेगा पहले अपनी जान बचाओ फिर रिपोर्टीग तो होती रहेगी, लेकिन मै उन्हें क्या बताऊ की इस तरह का मेरा पहला रिपोर्टीग था। मै भी पुरे जोश में था। चाहता था सब कभर कर लूं । और किया भी लेकिन एक गोली पास से गुजरने के बाद मैने पीछे कदम बढ़ाना ही उचीत समझा। पीछे सभी मीडिया वाले खड़े थे। जब उन्हें पता चला तो वे लोग मुझे बोलने लगे मै भी चुप चाप उनके बातों को सूनता रहा।
अब शाम के करीब छह बज चुके थे, पुलिस बलो को अब इंतजार था परमिशन की जैसे ही परमिशन उन्हें मिला फिर तो सभी पुलिस वाले मानो शैतान हो गये। पुरे गांव के चारों तरफ आग लगा दिया, खेत में पड़े गेहूं , ट्रेक्टर, थ्रेसर, मोटरसाइकिल, खेतों में रखे कंडा( बिठौरे) में आग लगा दी कुछ के घरों में भी आग लगा दी। पुलिस वालो को जो भी मिला उसी पर गुस्सा निकाला। नयी- नयी गाड़ियों को पल भर में चकना चूर कर दिया । क्या बड़े क्या बुजूर्ग सब पर कहर बरसा, यहां तक के बिमार और महिलाओं तक को नहीं छोड़ा गया। उसी दिन एक घर में बरात लौट कर आई थी उसे भी पुलिस वालो ने नहीं छोड़ा। वहां भी तोड़ फोड़ और मार -पीट की गयी कितने लोग लापता हो गये। पुलिस के कहर से बचने के लिए सभी लोग गांव छोड़ कर भाग गये। ना जाने कहां गये कहां रहा किसी को पता नहीं...रात भर भट्टा और पारसौल गांव मेंकोहराम मचता रहा है। रोने और चिल्लाने की आवाज आती रही। लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं था उस दिन आखिर कौन जाये वहां किसको अपनी जान गंवानी है। आब पुलिस हमें भी वहां जाने नहीं दे रही थी हम उत्सुक थे की क्या वहां हो रहा है। लेकिन हमें रोका जा रहा था। हम लोग वहां से हार कर और रिपोर्ट भी तैयार करना था सो फिर ऑफिस के लिए लौट आये। लेकिन टेलीविजन पर अपनी ऑखे गड़ाये रहे जानते रहे पल- पल की खबरें । लेकिन टीवी पर भी बाद में एक ही चीज बार बार दिखाये जाने लगा। रात काफि हो गयी थी। मैं काफी थक चुका था मुझे सोने की बहुत आवश्यकाता थी। सो मैने अपने घर के लिए निकल गया और थोड़ा सा खा कर सो गया ।..............
भट्टा कांड में अभी और भी बहुत बातें करनी है सो उसे अगले अंक में करूंगा ये भी बहुत लंबा हो गया है......